Sunday, April 12, 2020

जब हम लोग इंजीनियरिंग करने आये तो डे स्कॉलर थे।
तो घर हमने जो किराये पर लिया था वो 1bhk को 2bhk बनाया हुआ कुछ ट्रैन के कंपार्टमेंट जैसा था, एकदम सीधा पहला रूम फिर दूसरा फिर तीसरा फिर किचेन फिर लेट-बाथ।हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनी थी पुराने सुभाष नगर में । चार लोग हमारे रूममेट बने तो कुल पांच लोग रहने आये।
पहले रूम में एक, दूसरे और तीसरे में दो दो, इस तरह रहना प्लान हुआ।
जो हमारे रूममेट थे,बाद में अच्छे मित्र बने वो बड़े ब्रांडेड आदमी थे। मतलब पहनेंगे तो ब्रांडेड नही तो नंगे घूमेंगे, खैर  कुल मिला जुला कर एक ही ब्रांडेड चड्ढा जो जाकी का था तभी पहनते थे जब कॉलेज या कहीं बाहर का प्लान हो।
 घर में बेचारे नंगे ही डले रहते थे।धमकी ये होती थी जो तुम्हारे पास है वही हमारे पास है कोई इंटरेस्ट हो तो देखना। हम भी ठहरे कत्तई सन्त आदमी इंजीनियरिंग करने से पहले ही इंजीनियरिंग मैथमेटिक्स, नेटवर्क, कंट्रोल सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक्स से रिलेटेड 50 किताबे पहले से थी जिनकी ऐसी तैसी एक साल से हम कर रहे थे,उसी में भिड़े रहते।
वैसे सुभाष नगर में हमारी जान पहचान के सब दोस्त इन हरकतों से वाकिफ थे, कुल जोर जमा 30 लोग, तो कोई कुछ कहता नही था। कोई आता तो बेचारे चद्दर ओढ़ लेते सितम्बर में आये थे और हल्की हल्की ठंड भी थी । बाद में एक बड़ी टी शर्ट थी, जिसको ये खींच कर घुटनो तक लाने की कोशिश करते रहते थे उसका उपयोग करते।
किसी बाहरी को विशेष पता भी नही चलता, पर समस्या तब होती जब खाना बनाने वाली आती, हमारे हाथ पांव फूल जाते, मित्र जो थे हमारे इधर से उधर टहलते रहते पूरे घर में। तो ज्यों बाई अंदर आये हममे से कोई एक उड़ता हुआ सीधे लास्ट वाले रूम में की ये महोदय चद्दर ओढ़ के बैठ जाएं और आजतक बाई को ये हरकते पता नही चली। हम अगर चाय भी पी रहे होते हॉकरकार्नर  पर और बाई बस मुड़ते हुए दिख जाए,फिर हम चाय जल्दी पीकर उड़ते हुए नजर आते थे।
खैर एक साल से ज्यादा रहे उस घर में और ये भी बेचारे कुछ मानवीय हरकतों पर आ गए, फिर दूसरा घर लिया गया जो वहां से 200 मीटर दूर था और फिर वहां पहला रुम ही हम दोनो को मिला।

Saturday, May 13, 2017

जब माँ बूढी हो जायेगी, जब माँ बूढी हो जायेगी
पोपले मुँह से बोलते वक्त
 बात कुछ और निकल जाएगी,
फिर मुझे कई नए नामो से हर बार बुलाएगी
जब माँ बूढी हो जायेगी,जब माँ बूढी हो जायेगी
दांत नही होंगे उसके फिर मूंगफली को
 टॉफी की तरह चुभलायेगी,
जब माँ बूढी हो जायेगी,जब माँ बूढी हो जायेगी
अपने हाथ से बाल नही बंधेंगे उसके,
 फिर मुझ नौसिखिये से अपना बाल बंधवाएगी
जब माँ बूढी हो जायेगी, जब माँ बूढी हो जायेगी
झुर्री वाले हाथो से मेरे सिर को सहलाएगी
जब माँ बूढी हो जायेगी, जब माँ बूढी हो जायेगी
बचपन में पाला था उसने,
अब खुद बचपना करते नजर आएगी
जब माँ बूढी हो जायेगी,जब माँ बूढी हो जायेगी
              अभिनव कुमार तिवारी "अभि"


Friday, August 5, 2016

दुनिया मे कोई भी निर्णय लेना कितना मुश्किल है उससे पूछिये जो रोज इससे दो चार होते हैं। ये करूँ या वो करूँ क्या करूँ क्या ना करूँ जैसे तमाम सवाल आते रहते हैं मन में और शायद यही कारण है की प्रायिकता से लेकर ऑपरेशनल रिसर्च तक के तमाम सिद्धान्त पढाये जाते हैं सिर्फ निर्णय लेने के लिए। फिर भी सटीक निर्णय लेना इतना आसान नही है वैसे निर्णय लेना एक सतत प्रक्रिया है। जिसमे हर निर्णय आगे वाले निर्णय का आधार होता है पर अगर हम गलत निर्णय की बात करे तो कोई निर्णय गलत नही होता। जी सही पढ़ा आपने कोई गलत निर्णय जैसी चीज इस दुनिया में अस्तित्व में नही है। बस आपकी क्षमताएं उस निर्णय को सही साबित करने के लिए अपर्याप्त हैं और हाँ परिस्थितयां भी जिम्मेदार हैं उसे अंतिम मुकाम तक पहुँचाने में। तो वास्तव में क्षमताओं का सही आकलन, परिस्थितयों के प्रभाव का सही विश्लेषण आपके निर्णय को सटीक साबित कर पायेगा।
आपके द्वारा लिया गया निर्णय सही होने या गलत होने के अलग प्रभाव हैं जैसे किसी निर्णय के सही होने से उसके द्वारा होने वाला अधिकतम या न्यूनतम फायदा वैसे ही गलत होने से अधिकतम या न्यूनतम नुकसान का अध्ययन
क्रमशः
अभिनव कुमार तिवारी

Friday, July 15, 2016

चुनाव बीतते ही आ जाता हूँ
 अपनी औकात पर,
मैं कोई और नहीं
 आम आदमी हूँ,
 जो रहता हूँ
 हर चुनावी बिसात पर।
हर नेता
 कोशिश करते है की,
 सुधरे जाये हालात मेरे
पर एक मैं हूँ,
 जो की काबिज रहता हूँ
 अपनी जात पर।
रहता हूँ इस आस में
 की सुधरेंगे हालात मेरे,
 पर देख के हकीकते
 इस मुल्क के,
नहीं लगता रहूं
 किसी के आस पर।
अभिनव कुमार तिवारी 'अभि'

Wednesday, April 27, 2016

हमारे यह एक वेदाचार्य है प्रकांड विद्वान् है संस्कृत के  और ज्योतिषाचार्य भी है। उनकी एक इच्छा थी की वो किसी को ये सब सिखा कर जाये।  बिना किसी विशेष लाभ के पर शर्ते बड़ी कठोर सी थी। याद रखिये कलाम ने भी बड़ी कठोर शर्ते पूरी की थी सुबह चार बजे स्नान कर के आना, तब गणित पढ़े थे और ये शर्ते भी बालक अवस्था की है। खैर एक आध लोग आये कोई दो दिन रुका कोई चार दिन।
कोई पूरी तरह विद्यार्जन नहीं कर सका और बीच में ही भाग खड़ा हुआ।  अब बेचारे जिंदगी के उत्तरार्ध में है और अब शायद ही अपने जैसा विद्वान् किसी को बना पाए। अब अगर समाज उनसे कुछ सवाल करें की अब तो आप जा रहे हो पर अपने जैसा भी किसी को नहीं बना पाए तो क्या जवाब दे।
याद रखिये जिसने इस समाज का इस देश का प्रतिनिधित्व किया हो और उसे  गर्वानिवित किया हो। वो कभी नहीं चाहेगा की उसका देश या समाज कभी पिछड़े उसने जरूर कोशिश की होगी अपने जैसा बनाने के लिए शर्ते नहीं पूरा कर पाए होंगे हम बस यही उसका दोष है।  क्योंकि शर्त आप पूरी नहीं पर कर पाए है। ये दोष हमारा है मेरे दोस्त की फिर मिल्खा भी मिल्खा नहीं बना सका।
बाकि आप डॉ कुमार विश्वास  को भी डॉकटरो का अम्बेस्डर घोषित कर दो क्यू वो भी तो डॉक्ट्रेट है पढ़ा लिखा आदमी है 

Friday, February 19, 2016

मै तकनीकी में इतना पिछड़ा हुआ हूँ की आज के इस ओ एस वाले फ़ोन के जमाने में मै नोकिया १६१६ चला रहा हूँ| मुझे थोड़ी सी आशा है की आप हमारी इस मनोदशा को समझ रहे होंगे ,
और इसके लिए मै सरकार से आरक्षण और वित्त पोषण की की मांग करता हूँ|
मुझे उम्मीद है आप लोग इसमें मेरा साथ देंगे और मेरी बातो को सरकार तक पहुचाएंगे
मजाक लग रहा है
आखिर भारत में होता क्या है जिसको मन में आया बन जाता है शनि देव, सारी व्यवस्था पर नजरे टेढ़ी कर देता है भाई आरक्षण चाहिए
अपनी क़ाबलियत बढ़ाने से ये बेहतर तरीका जो ठहरा बइठे ठाले एक आध पटरी उखाड़ देंगे दो चार ट्रैन फूंक देंगे सरकार आज नही तो कल घुटने पर आ ही जाएगी |
और हमारी क़ाबलियत से इतर हमें कुछ आरक्षण का प्रसाद चढ़ावे में दे ही देगी
अब इसमें आग में घी डालती एक अमेरकी विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट (शायद हार्वर्ड )
आरक्षण से रेलवे की सेवा गुणवत्ता में कोई फर्क नही पड़ा है|
भई अब सवाल ये है की सर्विस रेलवे देती है उ सर्विस है| भाई गलती से पाकिस्तान छोड़ के किसी और ढंग के देश के रेलवे देखने की बाद से पता चलता है की अभी तो हम लालू जी द्वारा डिफइंड टमटम वाला युग में ही है |अब स्पेन जैसा देस भी हमे सेमी स्पीड ट्रैन बेच रहा है
आप लोग को लग रहा होगा की हम आरक्षण के विराध में है अरे गलती से भी मत सोचियेगा मेरे कहने का मतलब कुल मिला जुला के है की क़ाबलियत बढ़ा के आ आरक्षण खत्म करना है
नहीं तो दिन दूर नही है जब हमे मेक इन इंडिया वाला सामान भी किसी दूसरे देश से आएगा
 अभिनव कुमार तिवारी 'अभि'
वैसे कायदे से ये पोल खोल योजना है वो भी अपनी 
पर बता ही देता हूँ इंजीनियरिंग की प्रेकिटकल परीक्षा हम लोग कैसे निकलते थे वो भी तब जब हमने एक भी प्रेकिटकल न किया हो और पढाई के नाम पर पूरी नौटंकी हुई हो 
ये ब्रह्मास्त्र विधि थी और अंतिम भी जिसे हम आजमाया करते थे होता ये था की हम कोई एक टॉपिक खूब धुआधार पढ़ लेते थे मतलब उसपर आप कुछ भी पूछ लो बता देंगे और जब वाईबा शुरू होता था तो एक्जामिनर एक सवाल पूछे 
जवाब सॉरी सर 
दूसरा सवाल सॉरी सर 
तीसरा सवाल जवाब रिमेन कांस्टेंट
और तब तक जब तक की आजिज आके वो ये न पूछ दे की तुमको क्या आता है
बस इसी वक्त का हमे इंतजार होता और फटाक से वो टॉपिक पटक देते जो एकदम पी के आये होते
और फिर उसपर
एक छोटा सा सवाल करता( उसे उम्मीद नही होती जवाब की ) जवाब हाजिर
थोड़े आश्चर्य के साथ कठिन सवाल उस टॉपिक पर और फिर जवाब हाजिर
उसके बाद तो एक्जामिनर खुश और बढ़िया नंबर आपके खाते में
कुछ इसी तरह आज कल 

देश के विरोधियो के साथ खड़े है
अरे नाम तो हो रहा है लोग हमारे बारे में सुन तो रहे है फिर एक ही बार कोई ऐसा देशभक्ति वाला जवाब देंगे की सब दंग और अच्छी खासी सीट हमारे खाते में
क्युकी हम बहुत बड़े भूल्ल्कड़ है एक्जामिनर जो है